Prayagraj Mahakumbh The Heroic History of Naga Sadhus and Their Connection Jhansi

प्रयागराज महाकुंभ: नागा साधुओं का झांसी से जुड़ा वीरता भरा इतिहास

Jhansi News: प्रयागराज में इन दिनों महाकुंभ का आयोजन हो रहा है, जहां लाखों की संख्या में नागा साधु पहुंच रहे हैं। नागा साधुओं की उपस्थिति इस आयोजन को और भी विशेष बना रही है। लेकिन, क्या आप जानते हैं कि नागा साधुओं का इतिहास झांसी से भी जुड़ा है? यह कहानी 18वीं शताब्दी की है, जब प्रयागराज में अफगानी आक्रांताओं का आतंक बढ़ रहा था। उस समय झांसी में नागा साधुओं ने वाहिनी तैयार कर प्रयागराज को अफगानियों के कब्जे से मुक्त कराया था।

अफगानियों के खिलाफ नागा साधुओं की रणनीति

18वीं शताब्दी में अफगानी आक्रांताओं ने प्रयागराज पर कब्जा कर धार्मिक गतिविधियों को बाधित करना शुरू कर दिया था। झांसी के नागा साधू राजेंद्र गिरी ने जब यह खबर सुनी, तो उन्होंने नागा साधुओं को संगठित कर अफगानियों पर आक्रमण की योजना बनाई। हजारों की संख्या में नागा साधुओं ने शस्त्र विद्या का प्रदर्शन करते हुए अफगानियों को खदेड़ दिया और प्रयागराज को मुक्त कराया।

झांसी में 100 वर्षों तक रहा नागा साधुओं का अधिपत्य

झांसी का नागा साधुओं से गहरा नाता रहा है। 17वीं शताब्दी में लगभग 100 वर्षों तक मोंठ के आसपास के 114 गांवों पर नागा साधुओं का शासन रहा। उन्होंने मोंठ में एक किले का निर्माण भी कराया, जो उनके सामरिक और धार्मिक प्रभाव का प्रतीक है।

रानी लक्ष्मीबाई और नागा साधुओं का योगदान

1858 में रानी लक्ष्मीबाई ने ग्वालियर में अंग्रेजों के खिलाफ अंतिम युद्ध लड़ा। वीरगति को प्राप्त होने के बाद रानी के शव को अंग्रेजों से बचाने का जिम्मा नागा साधुओं ने लिया। संत गंगादास के आश्रम में नागा साधुओं ने अंग्रेजों से डटकर मुकाबला किया और रानी का अंतिम संस्कार संपन्न कराया। इसके अलावा, रानी के दत्तक पुत्र दामोदर राव को भी नागा साधुओं ने अंग्रेजों से बचाया।

झांसी के नागा साधुओं का ऐतिहासिक महत्व

अंतरराष्ट्रीय बौद्ध शोध संस्थान के उपाध्यक्ष हरगोविंद कुशवाहा और इतिहासकार डॉ. पीके जैन के अनुसार, नागा साधुओं का झांसी के इतिहास में महत्वपूर्ण योगदान रहा है। उन्होंने मोंठ में किले के साथ कई शिव मंदिरों का निर्माण कराया, जो आज भी उनकी विरासत की गवाही देते हैं।

नागा साधुओं की खासियत

नागा साधु न केवल धार्मिक ग्रंथों में निपुण होते हैं, बल्कि शस्त्र विद्या में भी माहिर होते हैं। उनका योगदान इतिहास के पन्नों में स्वर्ण अक्षरों में दर्ज है।